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सियासतगर्दी से मत डरिये: एक्टिविस्ट बने रहिये नेताजी

Oral Bites & Moral Heights
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Political Columnist : Abhijeet Sinha

एक दिन सुबह सुबह शेर को लगा की उसे कई दिनों से किसी ने सम्राट नहीं कहा। पकड़ा एक लोमड़ी को कहा – बोल, सम्राट कौन है? लोमड़ी– आप ही तो है सम्राट। शेर चला आगे पकड़ा एक हिरन को। हिरन ने कहा आप ही है। ऐसे दस पांच जानवरों को पकड़ा, सब ने कहा ‘आप’ है , ‘आप’ है, ‘आप’ ही तो है महाराज भूल गए क्या? अकड़ बढ़ गई, चाल बदल गई, दहाड़ कर रोक लिया एक हाथी को। हाथी से पूछा कि तुम्हे मालूम है जंगल का सम्राट कौन है? हाथी ने अपने सूंड में लपेटा शेर को और दूर फेंक दिया तो हड्डी चरमरा गई । शेर मुश्किल से उठा, धुल झाड़ कर बोला– ये तो हद हो गई अगर तुमको ठीक उत्तर मालूम नहीं, तो कह देते कि मालूम नहीं। इस तरह सूंड में उठाकर फेंकने की क्या जरुरत थी? इतना बोल कर सम्राट चल निकले ! सच है की हाथी को उत्तर देने की जरुरत नहीं पड़ती, यही उसका उत्तर है लेकिन मुझे तो यहाँ उत्तर देना ही पड़ेगा की हाथी कौन और सम्राट कौन?
नेताजी मत सोचिये की कुत्ते काट नहीं सकते हाथी पर जो चढ़ गए है। राजनीति पे चढ़ तो गए लेकिन इसपे बने रहना हाथी की पीठ पर डटे रहने से भी ज्यादा मुश्किल है। खास कर ‘आप’ के लिए। क्यों ? इसका अगर राजनैतिक उत्तर दूंगा तो विश्लेषण के नाम पर आप लोग उसका ढोल बजा कर मुझे ट्रोल बना देंगे इसलिए पहली बार इसका वैज्ञानिक उत्तर देता हूँ।

अल्बर्ट आइन्स्टीन ने सापेक्षवाद (रिलेटिविटी) के सिद्धान्त को जन्म दिया की हर चीज़ सापेक्ष है और विभिन्न संदर्भो में विभिन्न हो जाती है। लोगों ने उससे पूछा की तुम्हारा सिद्धान्त तो बड़ा जटिल है जरा सरलता से संक्षेप में समझाओ तो उसने कहा : सार की बात तो इतनी है कि ऐसा समझो कि जिस प्रेयसी को पाने के लिए तुम दीवाने थे। वह तुम्हे मिल गई, तो घंटा ऐसे बीत जायेगा जैसे कुछ क्षण ही बीतें हों । घडी एक दम से घुमती हुई मालूम होगी। दिन-रात सब कुछ ही देर में गुजर जायेंगे और देखते ही देखते शाम हो जाएगी। अब समझो कि तुम किसी मित्र के पास बैठे हो, जो मरण-शैया पर पड़ा हो- अब मारा तब मरा। रात ऐसे बीतेंगी जैसे सदियाँ। उस रात की स्मृति भी ऐसी होगी जैसे संघर्षपूर्ण दशक हो। तर्क मनोवैज्ञानिक है लेकिन वर्तमान राजनैतिक परिपेक्ष में सटीक बैठता है क्योकि अभी हम बिलकुल उलटी हालत में है, शीर्षासन कर रहे है। सब चीजें उलटी दिखाई पड रही है। जैसे जनता की सेवा में पुलिस नेताओं को अक्सर भूल जाती है। कभी-कभी उसका जनता प्रेम इतना जाग जाता है की मंत्री बेचारा चीखता–चिल्लाता रह जाता है। आपने सीधे बैठ कर अखबार में ऐसी कई ऐसी ख़बरें पढ़ीं होंगी जिसमे नेताओ की दबंगई से ले कर उनके जघन्य अपराधों में साथ निभाती पुलिस ने जनता को कई बार पैरों तले रौंदा होगा। लेकिन पहली बार सब चींजें उलटी दिखाई दे रही है। हाथी सम्राट को उठा-उठा कर पटक रहा है इसलिए नहीं क्योकि वो सम्राट बन गया है इसलिए क्योकि सम्राट भूल गया की वो सम्राट है और उसका काम क्या है? इसलिए नहीं की सम्राट कमजोर है इसलिए के शेर ने अपने चिर-परिचित अंदाज से नाप-तोल के घात लगा कर हमला नहीं किया।

घात लगाने पे ऐतराज और उस से इंकार मत कीजिये क्योकि आप ने जिस भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए सम्राट होना स्वीकार किया है वो बीते सालो में खा-पी कर इतना विशालकाए हाथी बन गया है की आजकल जो भी सम्राट इस जंगल की गद्दी पर बैठ रहे है उसके साथ ताल-मेल बैठा कर जंगल-राज चला रहें है। अब आपको ये ताल-मेल मंजूर नहीं तो साबित करना पड़ेगा की आप शेर है, चतुर, दूरदर्शी, घातक, शक्तिशाली और खतरनाक और -सम्राट कभी किसी से नहीं पूछता की जंगल का सम्राट कौन है? वो जब निकलता है तो उसकी संचित उर्जा ये स्थापित कर देती है की वो कौन है।

अब ‘आप’ कहेंगे की आप तो सेवक है ऊपर से ‘ईमानदार’ आप को घातक होने में और सम्राट होने में आपत्ति है तो इसका मेरे पास कोई वैज्ञानिक उत्तर नहीं है लेकिन एक सच है जो आपको स्वीकार करना पड़ेगा कि- जिससे लड़ना है उस स्तर की शक्ति तो स्वीकार करनी ही पड़ेगा वर्ना जनता तो आज तक यही समझती आयी थी की शेर ही सम्राट होता है वो तो हाथी की ताकत अन्दुरुनी उथलपुथल में सामने आगई। अब कमजोर पड़े तो कोई और शेर आकर दावा ठोंक देगा की सबकुछ ठीक है शेर ही सम्राट है। ये आपका शीर्षासन नहीं राम-राज है। इसलिए राजनैतिक हिंसा से मत डरिये : एक्टिविस्ट बने रहिये नेताजी।
अभिजीत सिन्हा
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राजनैतिक व्ययंग : लेखक अभिजीत सिन्हा के अन्य हास्य-व्ययंग
केंद्र की ललिता पवार और नई बहू केजरीवाल
सियासतगर्दी से मत डरिये : एक्टिविस्ट बने रहिये नेताजी
गले में हड्डी और विधानसभा में कबड्डी
टोपी लगा लीजिये नेताजी
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इस रचना का किसी भी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है। नाम, स्थान, भाव-भंगिमा अथवा चारित्रिक समानताये एक संयोग भर है। राजनैतिक और हास्य व्ययंग का उद्देश्य मनोरंजन और विनोद है। किसी भी राजनैतिक दल, समूह, जाति, व्यक्ति अथवा वर्ग का उपहास करना नहीं। यदि इस लेख से किसी की धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक या व्यक्तिगत भावनाओ को ठेस पहुँचती है तो लेखक को इस गैर-इरादतन नुकसान का अफ़सोस है।
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