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टोपी लगा लीजिये नेताजी !

Oral Bites & Moral Heights
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Image 3सुस्त खड़े पत्रकार एक झटके में चौक गए। शायद किसी ने फुसफुसाकर कर कहा की नेताजी बाहर आ रहे है। एक युवा पत्रकारा जो घन्टे भर से अधेड़ हो चले फोटोग्राफरों के आँखों की फोटोग्राफी झेल रही थी। उसने राहत की सांस ली और बुदबुदाई– फ़ाइनली!!! सभी छायाकार नेता जी की किसी ऐसी मुद्रा में तस्वीर लेना चाहते थें जो अखबारों में उनके ताज़ा विवाद पर सटीक लगे। नेताजी जैसे ही पार्टी कार्यालय के भीतरी कमरे से निकले- बरामदे में खड़ा एक सुख चूका कार्यकर्ता आशीर्वाद लेने उनके चरणकमलों पर कुछ यूँ झुका, जैसे वहीँ लोट जायेगा। वो तो नेता जी के PA ने उस गिरते पेड़ की बाजु पकड़ ली और झटके से उसे किनारे कर दिया। नेताजी को शायद PA की ये हरकत अच्छी नहीं लगी शायद वो दंडवत प्रणाम चाहते थे, लेकिन अपनी नाराजगी को सफाई से छिपाते हुए नेताजी बोले – “भाई पैर क्यों छुते हो? मै सेवा के लिए ही तो राजनीती में आया हूँ।” लेकिन PA ने नेताजी की नाराजगी ताड ली और धीरे से उनके कान में फुसफुसाया – ‘सर! ये आशीर्वाद लेने नही आया था। ‘प्लांटेड फाल’ (Planted Fall) था उसका। वो आपके पांव पर गिरता। कोई उसकी तस्वीर लेता। कल फेसबुक और ट्विटर पर ये लिख कर डाल देता की –“कितने जूते मारने चाहियें ऐसे नेता को जिसके क़दमों में लोट रहा है- ये गरीब आदमी?” और उसके बाद शुरू हो जाता आपके ‘पोलिटिकल फाल’ (Political Fall) का सोशल मिडिया फॉलो-अप। फिर आप गले में हड्डी अटकाए विधानसभा में कबड्डी कैसे खेलेंगे ?

राजनैतिक व्ययंग : अभिजीत सिन्हा

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नेताजी को लगा जैसे उनके PA ने उन्हें एक बहुत बड़े स्केंडल से बा-इज्ज़त बरी निकाल लिया हो। सीढी उतरते हुए नेताजी ने अपने PA की ओर एक मुस्कुराहट उछाली जिसे उसने उसी फुर्ती से लपक लिया। तभी क्लिक की आवाज़ के साथ एक फ़्लैश चमका, तो नेताजी के पिछलग्गुओं ने आगे बढ़ कर PRESS का मोर्चा सम्हाला और नेताजी के PA ने ठीक उनके पीछे पोजीशन ले ली। जहाँ से नेताजी के कान में मंत्र फूंकने में सुविधा हो और लोकतंत्र की लाज भी बची रहे। जब स्थिर-छवि लेने वाले फोटोग्राफरों ने तडा-तड शटर गिराने शुरू किये तो उनके फ़्लैश ने भी ताल से ताल मिला कर ऐसा दुधिया तांडव किया की – ‘बड़े से बड़े घोटाले का’ सर उठा कर जवाब देने वाले नेताजी को भी कुछ देर के लिए नज़रें झुकनी पड़ी। अब नेता जी न्यूज़ चैनल के कैमरों के निशाने पर थे। उनके सामने चैनल वाले अपने-अपने माइक टिका रहे थे। अभी सवाल-जवाब का दौर शुरू भी नहीं हुआ था। पत्रकार बेताब थें की कब माइक मिले और नेताजी पर सवाल दागें? लेकिन इस उथल पुथल में नेताजी एक दम शांत, होठ अधखुले और युवा पत्रकारा की दर्शनाभिलाशी उनकी आँखे जैसे छिप-छिप कर मन ही मन में कोई ताना-बना बुन रहीं हों। तभी नेताजी के गुपचुप चल रहे इस दिवा-स्वप्न में उनके PA ने घुड़की मारी। लेकिन नेताजी के कान में फुसफुसाने का जब कोई असर न दिखा। तो PA ने हल्के से उनकी बगल में कोहनी मारी और नेता जी का चिढ़ा हुआ जवाब आया-“ क्या है?” PA कान में फुसफुसाया – “नेताजी टोपी लगा लीजिये।” नेताजी घबरा गये, बेशर्म ठहरे चेहरा शर्म से लाल तो न हो सका लेकिन पेशानी पर पसीने की बुँदे ऐसे आयी जैसे उनकी चोरी पकड़ी ली गई हो –“पागल हो गए हो क्या? पब्लिक में कैसे ……….यार? तुम भी ना कभी-कभी?” इतने में एक पत्रकार ने पूछा – सर, शुरू करे? PA ने अपनी डायरी में रखी टोपी निकली और नेताजी के सर पर पहनाते हुए कहा – “हाँ ! अब शुरू कीजिये।” नेताजी ने झेंप कर अपने PA को एक भरपूर नज़र देखा। जैसे पूछ रहे हों कि- “ ओह ! इस टोपी के बारे में बोल रहे थे? मैं तो कुछ और …..” PA ने भी पलकें झपका के सहमती जताई कि-“मै जनता हूँ आप किस टोपी के बारे में सोंच कर घबरा गए थे? घबराइए मत यहाँ वैसी सुरक्षा नहीं चाहिए, बस अपने हालात पर काबू कीजिये”।

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इस रचना का किसी भी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है। नाम, स्थान, भाव-भंगिमा अथवा चारित्रिक समानताये एक संयोग भर है। राजनैतिक और हास्य व्ययंग का उद्देश्य मनोरंजन और विनोद है। किसी भी राजनैतिक दल, समूह, जाति, व्यक्ति अथवा वर्ग का उपहास करना नहीं। यदि इस लेख से किसी की धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक या व्यक्तिगत भावनाओ को ठेस पहुँचती है तो लेखक को इस गैर-इरादतन नुकसान का अफ़सोस है।
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