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लालटेन की रौशनी में विकास का तीर

Oral Bites & Moral Heights
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अभिजीत सिन्हा

    दो नेता थें हमेशा एक दुसरे को चोर-चोर कहते रहते थें। एक ने तंग-आकर डकैती शुरू कर दी। फिर चुनाव लड़ के मुख्यमंत्री बन गया लेकिन अपहरण, बलात्कार, डकैती जारी रखी। हद तो तब हो गई जब उसने करोडो का चारा चुरा लिया। दुसरे नेता ने अपराध के खिलाफ विकास का परचम बुलंद किया और चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बन गया। कई लुभावने वादे किये 5 साल में विकास का माहौल तो बना लिया लेकिन विकास नहीं कर पाया। दोबारा जनादेश माँगा तो जनता ने फिर मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन इसबार उसे डर सताने लगा कि शायद दोबारा जनता मौका न दे, बस फिर क्या था बोरे भरे जाने लगे और विकास के नाम पर शुरू हो गई विशेष राज्य के दर्जे की राजनीति। जनता उसे भी समझ चुकी थी लेकिन वो खुद समझने को राजी नहीं था। विकास की विफलता को छिपाने के लिए रोज नए मुद्दे तलाशते हुए इस नेता ने मुस्लिम वोट-बैंक को लुभाने के लिए आड़े-तिरछे फैसले लिए, पुराने साथियों को भी भुलाया। बस अगले ही लोकसभा चुनाव में जनता ने उसे धुल चटा दी।
पटना सचिवालय उद्यान
पटना सचिवालय उद्यान

लेकिन नेता वो भी पक्का था पहले उसने मुख्यमंत्री पद से स्तीफा दिया और एक महादलित को को बिठा कर हाथ में रिमोट थाम ली। लेकिन जनता के सामने उसकी असली पोल-पट्टी तब खुली जब उसने लालटेन की रौशनी में तीर मारा। मतलब अपने पुराने विरोधी, जिसे चोर बोल बोल कर वो चुनाव जीता करता था उसी से हाथ मिला लिया। यूँ तो उसने लालटेन की रौशनी में एक तीर से तीन शिकार करने की ठानी। लेकिन देखना ये है की मुस्लिम वोट बैंक जो की लोकसभा चुनाव में संप्रदायिकता से ऊपर उठ चूका था उतनी ऊंचाई तक उसका तीर पहुँचता है या नहीं ? लेकिन दो बातें तो तय है की उसका तीर महादलित वोट-बैंक को बेंध देगा और अब सब जान गए की एक दुसरे को चोर कहने वाले ये दोनों चोर है।
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इस रचना का किसी भी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है। नाम, स्थान, भाव-भंगिमा अथवा चारित्रिक समानताये एक संयोग भर है। राजनैतिक और हास्य व्ययंग का उद्देश्य मनोरंजन और विनोद है। किसी भी राजनैतिक दल, समूह, जाति, व्यक्ति अथवा वर्ग का उपहास करना नहीं। यदि इस लेख से किसी की धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक या व्यक्तिगत भावनाओ को ठेस पहुँचती है तो लेखक को इस गैर-इरादतन नुकसान का अफ़सोस है।
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