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नेताजी का इंटरव्यू

Oral Bites & Moral Heights
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अभिजीत सिन्हा

  • एक बार एक लेखक ने एक संघर्ष-रत नेता को लोकप्रियता का मंत्र दे दिया –“इस पुरे इलाके में आज तक दूर तक कोई कम्युनिस्ट नेता नहीं हुआ है”। नेता जी को बात लग गई बस कमुनिस्ट हो गए।दूर-दूर तक खबर फ़ैल गई की एक मामूली नेता कम्युनिस्ट हो गया। गाँव में शहर से पत्रकार आने लगे, साक्षातकार होने लगा, अख़बारों में फोटो भी छप गई। जो भी सुनता उसे आश्चर्य होता क्योंकि सभी जानते थे की नेता अपनी चीजों को लेकर कितने पोजेसिव था।

    जब एक खोजी पत्रकार ने ये खबर सुनी तो वो सोंच में पड़ गया। उसने नेताजी का अगला पिछला इतिहास खंगालना शुरू किया। नेताजी ने कब किस चुनावों में कितना कमाया, सब समझ बुझ के वो नेता जी का इंटरव्यू लेने पहुंचा।

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      पत्रकार : “ नेताजी क्या आप जानते है की कम्युनिज्म का मतलब क्या है ?”
      नेताजी : “हाँ , मुझे पता है।”

    पत्रकार : “ क्या आपको पता है अगर आपके पास दो कार है और किसी के पास एक भी नहीं तो आपको अपनी एक कार देनी पड़ेगी? ”
    नेताजी : “ हाँ , और मैं अपनी इच्छा से देने के लिए तैयार भी हूँ ।”

      पत्रकार : “ अगर आपके पास दो बंगले हैं और किसी के पास एक भी नहीं तो आपको अपना एक बंगला देना होगा ?”
      नेताजी: “ हाँ , और मैं पूरी तरह से देने को तैयार हूँ ।”

        पत्रकार :” और आप जानते है अगर आपके पास दो बकरियां हैं और किसी के पास एक भी नहीं तो आपको अपनी एक बकरी देनी पड़ेगी ?”
        नेताजी: “ नहीं , मैं नहीं दे सकता, क्योकि यहाँ कम्युनिस्म की बात सही नहीं बैठती है”

      पत्रकार: “ पर क्यों , यहाँ भी कम्युनिस्म लागू होता है। क्या आप देने के लिए कोई तर्क है की यहाँ बात नहीं बैठती?”
      नेताजी: “ हाँ है क्योंकि मेरे पास कार और बंगले तो नहीं हैं, लेकिन दो बकरियां ज़रूर हैं।”

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      इस रचना का किसी भी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है। नाम, स्थान, भाव-भंगिमा अथवा चारित्रिक समानताये एक संयोग भर है। राजनैतिक और हास्य व्ययंग का उद्देश्य मनोरंजन और विनोद है। किसी भी राजनैतिक दल, समूह, जाति, व्यक्ति अथवा वर्ग का उपहास करना नहीं। यदि इस लेख से किसी की धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक या व्यक्तिगत भावनाओ को ठेस पहुँचती है तो लेखक को इस गैर-इरादतन नुकसान का अफ़सोस है।
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